व्रत कथा -
कालांतर में राजा अश्वपति के घर बेहद रूपवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री बड़ी हुई तो उनके लिए योग्य वर नहीं मिला। उस समय राजा अश्वपति ने अपनी कन्या से कहा- हे देवी! आप स्वयं मनचाहा वर ढूंढकर विवाह कर सकती हैं।कुछ समय बीतने के बाद सावित्री का मिलना राजा द्युमत्सेन से हुई। सावित्री ने द्युमत्सेन से शादी करने की बात अपने पिता से की।
जब नारद जी को इस बात की खबर हुई, तो राजा अश्वपति के पास आकर बोले- आपकी कन्या ने जो वर चुना है, जल्द ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस विवाह को यथाशीघ्र रोकने में ही सावित्री की भलाई है।
उस समय राजा अश्वपति ने सावित्री को शादी न करने की सलाह दी। इसके बावजूद सावित्री नहीं मानी। विधि के विधान अनुरूप शादी के पश्चात राजा द्युमत्सेन के साथ सावित्री अपने ससुराल चली गई।
द्युमत्सेन का ध्यान अक्सर भगवान् धर्मराज यमराज पर रहता था। उसे ज्ञात हो गया कि उसकी जीवनकाल संख्या समाप्त होने वाली है। यमराज ने उसकी मृत्यु की योजना बनाई। जब ध्यान में यमराज ने उसे लिया, तो द्युमत्सेन ने सावित्री से कहा- "हे सावित्री, मेरी मृत्यु का समय आ गया है। तू यहाँ रुक, मैं जा रहा हूँ।"
सावित्री ने द्युमत्सेन के अंदाज से जवाब दिया- "मेरे पति, मैं तुम्हारे साथ ही चलूँगी। आदर्श पत्नी की शक्ति और सामर्थ्य इतना होता है कि वह अपने पति की जीवनकाल को भी बढ़ा सकती है।"
यमराज ने सावित्री की बात सुनी, लेकिन उसने कहा- "तेरी इच्छा स्वीकार करते हुए भी मैं तुझे अपने साथ नहीं ले सकता।"
सावित्री ने तत्परता से कहा- "मेरे आराध्य भगवान् सूर्यदेव ने मुझे वरदान दिया है कि मैं तेरी मृत्यु को रोक सकती हूँ। अतः मैं अपने पति की जीवनकाल को बढ़ाने का व्रत करती हूँ।"
सावित्री ने हार नहीं मानी और यमराज को कहा- "यदि तुम मुझे अपने साथ नहीं ले जा सकते, तो कृपया मेरी एक विनती स्वीकार करो। मेरे पति को एकमात्र सौतन के रूप में तुम्हारे साथ जीने दो।"
यमराज चकित हो गए और उन्होंने सावित्री की बात स्वीकार कर ली। वह द्युमत्सेन को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए।
सावित्री और यमराज का सफर शुरू हुआ। वे यमलोक के पास पहुंचे, जहां यमराज का सार्वभौमिक आवास स्थान था।
अगले दिन सावित्री ने यमराज से विनती की- "कृपया मेरे पति को अपने जीवित अवस्था में वापस लौटा दीजिए। मैं व्रत और तपस्या से इसकी आपेक्षिक संख्या बढ़ा रही हूँ।"
यमराज चमत्कारिक रूप से स्तुत हो गए और सावित्री की प्रार्थना को स्वीकार कर दिया। वे द्युमत्सेन को अपनी जीवित अवस्था में वापस लौटा दिए।
सावित्री की पतिव्रता, साहस और भक्ति का प्रमाण था। उनकी कथा देशभक्ति और प्रेम की अद्भुत उदाहरण मानी जाती है। लोग उन्हें देवी का अवतार मानते थे और उनकी पूजा-अर्चना करते थे। सावित्री की प्रेरणा से बहुत से लोग अपने पति-पत्नी के बीच संबंधों में समझदारी और स्नेह बनाए रखने का संकल्प लेते हैं।
वर्षों बाद जब राजा अश्वपति और रानी सावित्री का समय आया तो उन्होंने द्युमत्सेन को अपने राज्य का युवराज बनाया। वह समाज की सेवा करते रहे और अपने पिता के आदर्शों को अग्रसर रखा। सावित्री ने एक आदर्श पत्नी के रूप में द्युमत्सेन के साथ खुशियों और संयम के साथ जीने का वचन दिया था।
इस प्रकार, सावित्री ने अपने पति की मृत्यु को रोकने के लिए अपने पूरे सामर्थ्य, शक्ति और धैर्य का प्रदर्शन किया। उनकी अनोखी कहानी हमें साहस, प्रेम और समर्पण की महत्वपूर्ण सीख देती है। सावित्री एक महान आदर्श हैं जिन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
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